प्रथम निर्मल कुमार जोशी वन्य जीव संरक्षण पुरूस्कार समारोह

CPBCED

पुरूस्कार प्राप्तकर्ता
श्री त्रिलोक सिंह बिष्ट
उप वन रजि अधिकारी

परिचय एवं कार्य


श्री त्रिलोक सिंह बिष्ट
उप वन क्षेत्राधिकारी
पूर्वी पिण्डर रेंज
बदरीनाथ वन प्रभाग


वन और वन्य जीवों के संरक्ष्ण के लिए तन-मन से कार्य करने वाले श्री त्रिलोक सिंह बिष्ट, वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में अपने साथियों , सहयोगियों और अधिकारियों के साथ जनता के बीच अलग ही छवि के लिए जाने जाते हैं। वन और वन्य जीवों के लिए विख्यात उत्तराखण्ड के नन्दादेवी नेशनल पार्क, फूलों की घाटी राष्ट्रीय पार्क, केदारनाथ कस्तूरी मृग अभयारण्य और नन्दादेवी बायोस्फियर रिजर्ब के इलाके में संरक्षण को लेकर लीक से हटकर किए गए कार्यो के लिए जाने जाते हैं।


चमोली की थराली तहसील के वाण के एक सामान्य ग्रामीण परिवार में जन्में श्री त्रिलोक सिंह बिष्ट नब्बे के दशक की शुरूआत में तत्कालीन उत्तरप्रदेश वन्य जीव परिरक्षण संगठन में बतौर वन्य जीव रक्षक भर्ती हुए। इस दौरान इन्होंने अपने मेहनत और जिजिविषा के चलते अपने क्षेत्र में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए बेहतरीन कार्य किया। अवैध आखेट में सम्मिलित अनेक शिकारी गिरोहों को पकड़ने में कामयाब रहे। अवैध शिकारियों को संरक्षित क्षेत्रों से दूर रखने के साथ इन्होने अपने ज्ञान और अनुभव के जरिये विज्ञानियों की तरह कई इलाकों में ऐसे वन्यजीवों और वनस्पतियों के बारे में विभाग को जानकारी उपलब्ध करायी जिनके बारे में पहले उस क्षेत्र में उनकी उपस्थिति की सूचना नहीं थी। वन और वन्यजीवों को अलग-अलग गतिविधियों से हो रहे खतरे और सकारात्मक पहल के लिए अपने अनुभवों के आधार पर विभागीय अधिकारियों को कार्यक्रम बनाने में मदद की।


वन और वन्यजीव संरक्षण के लिए इन्होंने कभी भी समझौता नहीं किया। आठवें दशक में इन्होंने कई प्रभावशाली अवैध शिकारियों के खिलाफ एक्शन लिया। केदारनाथ कस्तूरी मृग अभयारण्य में वन्य जीवों के रक्षा के लिए इनके द्वारा कई बार राज्य के प्रभावशाली अफसरों के खिलाफ कार्यवाही की गई। इसके लिए इन्हें इन प्रभावशाली लोगों से टक्कर लेने की एवज में फर्जी मुकदमों में भी लपेटने की कोशिश की गई। लेकिन इन्होंने हर बार डटकर मुकाबला किया।

1988 और 1994 में कई इस तरह की घटनायें केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य में हुई जिसमें बिष्ट ने प्रभावशाली अधिकारियों के वन्यजीव अपराधों के खिलाफ कड़ा एक्शन लिया। इसका सकारात्मक लाभ यह हुआ कि छोटे-मोटे वन्यजीव शिकारियों की इन संरक्षित क्षेत्रों में अवैध शिकार की प्रवृत्ति पर काफी हद तक रोक लगी।


वर्तमान में बेदनी और आली बुग्याल के संरक्षण के लिए बिष्ट के प्रयासों से ये बुग्याल फिर से हरे-भरे होने लगे हैं। अपने कार्यो के लिए इन्हें विभागीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है। हल्द्वानी स्थित वानिकी प्रशिक्षण संस्थान में प्रशिक्षण के दौरान सर्वश्रेष्ट प्रशिक्षु सम्मान भी प्राप्त किया। श्री बिष्ट को राज्य स्तर पर राज्य स्थापना दिवस पर मुख्यमंत्री की ओर से वन एवं वन्य जीव संरक्षण के लिए सराहनीय कार्य के लिए सम्मान के साथ स्थानीय स्तर पर भी कई बार सम्मानित किया जा चुका
है।


59 साल के श्री बिष्ट इस समय डिप्टी रेंजर के रूप में उसी लगन और सेवा के साथ वन और वन्यजीवोके संरक्षण के लिए सक्रिय हैं।

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